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Thursday, January 11, 2018

Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

शहीद उधमसिंह की जीवनी


Shaheed Udham Singh Biography in Hindi 

सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को एक सिख परिवार में पंजाब राज्य के संगरूर जिले के सुनम गाँव में हुआ था | सरदार उधम सिंह की माँ का उनके जन्म के दो वर्ष बाद 1901 में देहांत हो गया था और पिताजी सरदार तेजपाल सिंह रेलवे में कर्मचारी थे जिनका उधम सिंह के जन्म के 8 साल बाद 1907 में देहांत हो गया था | इस तरह केवल 8 वर्ष की उम्र के उनके सर से माता पिता का साया उठ चूका था |
अब उनके माता पिता की मृत्यु के बाद उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह उधम सिंह को अमृतसर के खालसा अनाथालय में दाखिला कराया | शहीद उधम सिंह Udham Singh का बचपन में नाम शेर सिंह था लेकिन अनाथालय में सिख दीक्षा संस्कार देकर उनको उधम सिंह नाम दिया गया | 1918 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया |

13 अप्रैल 1919 को स्थानीय नेताओ ने अंग्रेजो के रोलेट एक्ट के विरोध में जलियावाला बाग़ में एक विशाल सभा का आयोजन किया था | इस रोलेट एक्ट के कारण भारतीयों के मूल अधिकारों का हनन हो रहा था | अमृतसर के जलियावाला बाग़ में उस समय लगभग 20000 निहत्थे प्रदर्शनकारी जमा हुए थे | उस समय उधम सिंह उस विशाल सभा के लिए पानी की व्यवस्था में लगे हुए थे |



जब अंग्रेज जनरल डायर को जलियावाला बाग़ में विद्रोह का पता चला तो उसने विद्रोह का दमन करने के लिए अपनी सेना को बिना किसी पूर्व सुचना के निहत्थे प्रदर्शनकारीयो पर अंधाधुंध गोलिया चलाने का आदेश दिया | अब डायर के आदेश पर डायर की सेना ने 15 मिनट में 1650 राउंड गोलिया चलाई थी |

जब गोलिया चली तब जलियावाला बाग़ में प्रवेश करने और बाहर निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता था और चारो तरफ से चाहरदीवारी से घिरा हुआ था | उस छोटे से दरवाजे पर भी जनरल डायर ने तोप लगवा दी थी और जो भी बाहर निकलने का प्रयास करता उसे तोप से उड़ा दिया जाता था | अब लोगो के लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता नही था और लगभग 3000 निहत्थे लोग उस भारी नरसंहार में मारे गये थे | उस जलियावाला बाग़ में एक कुंवा था लोग अपनी जान बचाने के लिए उस कुंवे में कूद गये लेकिन कुंवे में बचने के बजाय लाशो का ढेर लग गया | इसके बाद भी जब जनरल डायर वहा से निकलते वक़्त अमृतसर की गलियों में भारतीयों को गोलिया मारते हुए गया |

उस नरसंहार में शहीद उधम सिंह Udham Singh जीवित बच गये थे और उन्होंने अपनी आँखों से ये नरसंहार देखा था जिससे उन्हें भारी आघात लगा | उधम सिंह उस समय लगभग 11-12 वर्ष के थे और इतनी कम उम्र में उन्होंने संकल्प लिया कि “जिस डायर ने क्रूरता के साथ मेरे देश के नागरिको की हत्या की है इस डायर को मै जीवित नही छोडूंगा और यही मेरे जीवन का आखिरी संकल्प है ” | अब उधम सिंह अपने संकल्प को पूरा करने के लिए क्रांतिकारी दलों में शामिल हो गये | 1924 को वो गदर पार्टी में शामिल हो गये और भगत सिंह के पद चिन्हों पर चलने लगे |

अब उन्होंने विदेश जाने का विचार किया क्योंकि उनको वहा से असला गोला बारूद लाना था | इसके लिए उनके पास धन नही था तो उन्होंने धन इकट्ठा करने के लिए बढई का काम करना शुरू कर दिया था |लकड़ी का काम करते करते उन्होंने इतना पैसा कमा लिया कि वो विदेश चले  गये|  भगत सिंह के कहने पर वो विदेश से हथियार लेकर आये लेकिन बिना लाइसेंस हथियार रखने के जुर्म में उनको पांच वर्ष की सजा हो गयी | 1931 में उनकी रिहाई हो गयी और अब उन्होंने फिर विदेश जाकर हथियर लाने की योजना बनाई |

इस बार वो पुलिस को चकमा देकर पहले कश्मीर पहुचे और वहा से जर्मनी चले गये | 1934 से जर्मनी से लन्दन पहुच गये और लन्दन में जाकर वहा पर भी उन्होंने एक होटल में वेटर का काम किया  ताकि कुछ ओर पैसे इकट्ठे कर बन्दुक खरीदी जा सके | उनको ये सब काम करने में पुरे 21 साल लग गये फिर भी उनके मन में प्रतिशोध की ज्वाला कम नही हुयी थी | 21 साल तक केवल अपने संकल्प को पूरा करने के लिए जीवित थे और अब वो मौका आ गया था | 13 मार्च 1940 को लन्दन के एक शहर किंग्स्टन में जनरल डायर का रक बड़ा कार्यक्रम चल रहा था | उस सामरोह में जनरल डायर का सम्मान किया जा रहा था | उस कार्यक्रम में उधम सिंह Udham Singh पहुचे और अपनी जेब में रिवोल्वर छुपाकर एक सीट पर बैठ गये |

उस समारोह के अंत में उधम सिंह Udham Singh अपनी सीट से उठे और तुरंत जनरल डायर पर तड़ातड़ तीन गोलिया चलाई और तीन गोलिया चलाकर  डायर को मार दिया | डायर को मारने के बाद भागने के बजाय उन्होंने एक ही वाक्य कहा था “आज मैंने मेरे 21 साल पुराना संकल्प पूरा किया है और मै इसके बाद एक मिनट जिन्दा नही रहना चाहता हु ” | उन्होंने तुंरत समर्पण कर दिया क्योंकि जिस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने जीवन लगा दिया था वो पूरा हो गया था | अब उनको मरने का भी कोई गम नही था और उधम सिंह Udham Singh को तुरंत गिरफ्तार कर अगले आदेश तक जेल में डाल दिया | डायर की मौत की चाज के दौरान उधम सिंह ने जेल में 42 दिनू तक भूख हड़ताल की थी और उन्हें जबरदस्ती भोजन दिया जाता था |

जब डायर की मौत की चाज शुर हुयी तो उनको अंग्रेज अफसरों ने डायर को मारने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया “जनरल डायर ने मेरे देश के 3000 निर्दोष भारतवासियों की अकारण हत्या करा दी थी तभी मैंने जनरल डायर को मारने का संकल्प ले लिया था जिसे पूरा करने में मुझे पुरे 21 साल लगे | लेकिन मै अब खुश हु क्योंकि मेरा संकल्प पूरा हो गया , मुझे मौत से कोई डर नही है और अपने देश के लिए मै हसते हसते जान दे दूंगा  ,मैंने मेरे देशवासियों को अंग्रेज राज में तडपते देखा है और उनके दर्द का विरोध करना मेरा कर्तव्य था , मुझे गर्व है कि मुझे अपनी मातृभूमि के लिय न्योछावर होने का अवसर मिलेगा ” | इस तरह उधम सिंह के बयानों के आधार पे उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी और 31 जुलाई 1940 को उन्हें लन्दन की जेल में फांसी पर लटका दिया और फिर वही जेल में उनके शव को दफन कर दिया गया |

भारत के लोगो को जब उधम सिंह Udham Singh के फांसी की खबर लगी तो भारत के क्रांतिकारियों के मन में अंग्रेजो के प्रति विद्रोह ओर बढ़ गया और ज्वाला की तरह फ़ैल गया | इन्ही शहीदों के बलिदान के कारण उनकी मौत के केवल 7 वर्ष बाद भारत अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हो गया | 1974 में पंजाब के MLA संधू सिंह के कहने पर उनकी अस्थियो को जमीन खोदकर भारत लाया गया | बाद में उधम सिंह के अवशेषों  को अपने जन्म स्थान पर दाह संस्कार किया गया और उनकी अस्थियो को सतलज नदी में बहा दिया गया | उधम सिंह के जीवनी पर 1977 और 2000 में फिल्मे भी बनी और उनके नाम पर उत्तराखंड में एक जिले का नाम उधमसिंह नगर रखा गया |

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