दिप्दानोत्सव क्या है जाने इसके बारे मे।
१. सही अर्थ में दीपावली को दिप्दानोत्सव कहा जाता है .
२. यह एक बौद्ध त्यौहार है .
३. इसकी शुरुवात प्रसिद्द बौद्ध सम्राट अशोक ने २५८ ईसा पूर्व में की थी .
४. महामानव बुद्ध अपने जीवन में चौरासी हज़ार गाथाएं कहे थे .
५. अशोक महान ने चौरासी हज़ार बुद्ध बचन के प्रतिक के रूप में चौरासी हज़ार विहार, स्तूप और चैत्यों का निर्माण करवाया था . पाटलिपुत्र का अशोकाराम उन्होंने स्वयं के निर्देशन में बनवाया था .
६. सभी निर्माण पूर्ण हो जाने के बाद अशोक महान ने कार्तिक अमावश्या को एक भब्य उद्घाटन महोत्सव का आयोजन किया .इस महोत्सव के दिन सारे नगर , द्वार , महल तथा विहारों एवं स्तूपों को दीप माला एवं पुष्प माला से अलंकृत किया गया तथा सम्राज्य के सारे वासी इसे एक त्यौहार के रूप में हर्सोल्लास के साथ मनाये .
७. प्रत्येक घरों में स्तूप के मोडल के रूप में आँगन अथवा द्वार पर स्तूप बनाया गया जिसे आज किला , घर कुंडा अथवा घरौंदा कहा जाता है .
८.इस दिन उपसोथ (भिक्खुओं के सानिध्य में घर अथवा विहार में धम्म कथा सुनना ) किया गया , बुद्ध वंदना किया गया तथा भिक्खुओं को कल्याणार्थ दान दिए गए .
९ इस बौद्ध पर्व को दिप्दानोत्सव कहा गया .इसी दिन से प्रत्येक वर्ष यह त्यौहार मनाये जाने के परंपरा की शुरुवात हुई
१०. कार्तिक माह वर्षा ऋतू समाप्ति के बाद आता है .इस माह में बरसात के दौरान घर -मोहल्ला में जमा गंदगी , गलियों के कचरे के ढेर , तथा घरों के दीवारों और छतों पर ज़मी फफूंदी , दीवारों पर पानी के रिसाव के कारन बने बदरंग दाग-धब्बे आदि की साफ -सफाई की जाती है . रंग -रोगन किये जाते हैं . इसके बाद एक नई ताजगी का अनुभव होता है . यही कारन है की अशोक महान ने सभी निर्माणों के उद्घाटन के लिए यह माह चुना .
11कृष्ण पक्ष की अमावश्या की रात्रि घनघोर कालिमा समेटे होती है .यह ब्राह्मणवादी अज्ञान और अन्धकारयुक्त युग का प्रतिक है .इसी दिन स्तूपों विहारों का उद्घाटन कर नगर में दीप जला कर उजाला किया गया . दीपक की लौ प्रकाश ज्ञान और खुशहाली का प्रतिक है .इस प्रकार कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावश्य को बुद्ध देशना के प्रेरणा स्रोत नव निर्मित विहारों , स्तूपों का दिप्दानोत्सव के साथ उदघाटन कर अशोक महान ने समतामूलक नए युग के आगमन का पुरे जम्बुद्वीप में दुदुम्भी बजा कर स्वागत का सन्देश दिया .
१२. दिप्दानोत्सव दिवस के दुसरे अथवा तीसरे दिन गोबर्धन पूजा होता है जिसका सम्बन्ध असुर नायक कृष्ण से है . ऋग्वेद में कला असुर कृष्ण और इंद्र के बिच संघर्ष का वर्णन आया है . कृष्ण को देवदमन भी कहते हैं . अतः दीपावली का सम्बन्ध राम से नहीं मूलनिवासी असुर नायक कृष्ण से हैं .
१३. गोबर्धन पूजा के एक दिन बाद बैल पूजा ( गाय डाढ ) होता है .यह सिन्धु घटी सभ्यता के समय के साढ पूजा की परंपरा की मज़बूत कड़ी है .
१४. लेकीन मौर्य साम्राज्य के पतन और ब्राह्मण राज के आगमन के बाद दिप्दानोत्सव दिवस का ब्राह्मणी करन कर दिया गया .
१५. बुद्ध पूजा के स्थान पर लक्ष्मी - गणेश पूजा शुरू हो गया . दान के स्थान पर युआ प्रारंभ हो गया . शांति के जगह अशांति के प्रतिक पठाखे छूटने लगे .
१६ बुद्ध के चौरासी हज़ार देशना को चौरासी लाख योनी का नाम दे दिया गया .
१७. इस प्रकार धम्म बंधुओं ! दिप्दानोत्सव का पवित्र बौध पर्व ब्राह्मणी पर्व दीपावली में बदल गया और इसका सम्बन्ध राम -सीता से जोड़ दिया गया .
एक विनम्र अपील
१८. इस बौद्ध पर्व के गौरव को लौटाने के लिए हमें इसे बुद्ध संस्कृति के अनुसार मानना होगा .
१९. बुद्ध वंदना , धम्म वंदना , संघ वंदना , त्रिशरन , पंचशील का घर पर , विहार में सामूहिक पाठ करें .22 प्रतिज्ञाओं का पाठ करें . गरीबों , भिक्खुओं को दान दें . साफ श्वेत कपडा पहनें , मीठा भोजन करें , करवाएं , घरों पर पंचशील ध्वज लगायें
२०. पठाखा न छोडें , जुआ ना खेलें और मांस मदिरा का सेवन न करे ।
धन्यवाद !
जय भीम नमो बुद्धाय : ब्राह्मणों ने बौध और मूलनिवासी यानी असली भारत निवासिओ के इतिहास को या तो पूरी तरह ध्वस्त करने की कोशिस की या उनकी संस्कृति को अपसंस्कृति बनाने का प्रयास किया दीपावली / यानी दीपदान उत्सव यह एक बौध त्यौहार है लेकिन ब्राह्मणों ने इसे अपनी काल्पनिक कथा से जोड़ दिया रामायण वो काल्पनिक कथा है जिसका मंचन मध्यकाल अकबर शासनकाल में तुलसीदास दुबे ने शुरू किया था वैसे भी इसे ध्यान से देखा जाए की नवरात्रि के दौरान रामलीला का मंचन क्यों होता है जबकि नवराति की कहानी कुछ और है इसी तरह ब्राह्मणों द्वारा /लिखे बनाए गए रीत रिवाज त्यौहार कही नहीं टिकते , ब्राह्मण विदेशी हमलावर आर्य है
१. सही अर्थ में दीपावली को दिप्दानोत्सव कहा जाता है .
२. यह एक बौद्ध त्यौहार है .
३. इसकी शुरुवात प्रसिद्द बौद्ध सम्राट अशोक ने २५८ ईसा पूर्व में की थी .
४. महामानव बुद्ध अपने जीवन में चौरासी हज़ार गाथाएं कहे थे .
५. अशोक महान ने चौरासी हज़ार बुद्ध बचन के प्रतिक के रूप में चौरासी हज़ार विहार, स्तूप और चैत्यों का निर्माण करवाया था . पाटलिपुत्र का अशोकाराम उन्होंने स्वयं के निर्देशन में बनवाया था .
६. सभी निर्माण पूर्ण हो जाने के बाद अशोक महान ने कार्तिक अमावश्या को एक भब्य उद्घाटन महोत्सव का आयोजन किया .इस महोत्सव के दिन सारे नगर , द्वार , महल तथा विहारों एवं स्तूपों को दीप माला एवं पुष्प माला से अलंकृत किया गया तथा सम्राज्य के सारे वासी इसे एक त्यौहार के रूप में हर्सोल्लास के साथ मनाये .
७. प्रत्येक घरों में स्तूप के मोडल के रूप में आँगन अथवा द्वार पर स्तूप बनाया गया जिसे आज किला , घर कुंडा अथवा घरौंदा कहा जाता है .
८.इस दिन उपसोथ (भिक्खुओं के सानिध्य में घर अथवा विहार में धम्म कथा सुनना ) किया गया , बुद्ध वंदना किया गया तथा भिक्खुओं को कल्याणार्थ दान दिए गए .
९ इस बौद्ध पर्व को दिप्दानोत्सव कहा गया .इसी दिन से प्रत्येक वर्ष यह त्यौहार मनाये जाने के परंपरा की शुरुवात हुई
१०. कार्तिक माह वर्षा ऋतू समाप्ति के बाद आता है .इस माह में बरसात के दौरान घर -मोहल्ला में जमा गंदगी , गलियों के कचरे के ढेर , तथा घरों के दीवारों और छतों पर ज़मी फफूंदी , दीवारों पर पानी के रिसाव के कारन बने बदरंग दाग-धब्बे आदि की साफ -सफाई की जाती है . रंग -रोगन किये जाते हैं . इसके बाद एक नई ताजगी का अनुभव होता है . यही कारन है की अशोक महान ने सभी निर्माणों के उद्घाटन के लिए यह माह चुना .
11कृष्ण पक्ष की अमावश्या की रात्रि घनघोर कालिमा समेटे होती है .यह ब्राह्मणवादी अज्ञान और अन्धकारयुक्त युग का प्रतिक है .इसी दिन स्तूपों विहारों का उद्घाटन कर नगर में दीप जला कर उजाला किया गया . दीपक की लौ प्रकाश ज्ञान और खुशहाली का प्रतिक है .इस प्रकार कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावश्य को बुद्ध देशना के प्रेरणा स्रोत नव निर्मित विहारों , स्तूपों का दिप्दानोत्सव के साथ उदघाटन कर अशोक महान ने समतामूलक नए युग के आगमन का पुरे जम्बुद्वीप में दुदुम्भी बजा कर स्वागत का सन्देश दिया .
१२. दिप्दानोत्सव दिवस के दुसरे अथवा तीसरे दिन गोबर्धन पूजा होता है जिसका सम्बन्ध असुर नायक कृष्ण से है . ऋग्वेद में कला असुर कृष्ण और इंद्र के बिच संघर्ष का वर्णन आया है . कृष्ण को देवदमन भी कहते हैं . अतः दीपावली का सम्बन्ध राम से नहीं मूलनिवासी असुर नायक कृष्ण से हैं .
१३. गोबर्धन पूजा के एक दिन बाद बैल पूजा ( गाय डाढ ) होता है .यह सिन्धु घटी सभ्यता के समय के साढ पूजा की परंपरा की मज़बूत कड़ी है .
१४. लेकीन मौर्य साम्राज्य के पतन और ब्राह्मण राज के आगमन के बाद दिप्दानोत्सव दिवस का ब्राह्मणी करन कर दिया गया .
१५. बुद्ध पूजा के स्थान पर लक्ष्मी - गणेश पूजा शुरू हो गया . दान के स्थान पर युआ प्रारंभ हो गया . शांति के जगह अशांति के प्रतिक पठाखे छूटने लगे .
१६ बुद्ध के चौरासी हज़ार देशना को चौरासी लाख योनी का नाम दे दिया गया .
१७. इस प्रकार धम्म बंधुओं ! दिप्दानोत्सव का पवित्र बौध पर्व ब्राह्मणी पर्व दीपावली में बदल गया और इसका सम्बन्ध राम -सीता से जोड़ दिया गया .
एक विनम्र अपील
१८. इस बौद्ध पर्व के गौरव को लौटाने के लिए हमें इसे बुद्ध संस्कृति के अनुसार मानना होगा .
१९. बुद्ध वंदना , धम्म वंदना , संघ वंदना , त्रिशरन , पंचशील का घर पर , विहार में सामूहिक पाठ करें .22 प्रतिज्ञाओं का पाठ करें . गरीबों , भिक्खुओं को दान दें . साफ श्वेत कपडा पहनें , मीठा भोजन करें , करवाएं , घरों पर पंचशील ध्वज लगायें
२०. पठाखा न छोडें , जुआ ना खेलें और मांस मदिरा का सेवन न करे ।
धन्यवाद !
Jai bhim,Namo Buddhaya.
ReplyDeleteJay bhim nomo Buddhay
ReplyDeleteHello sir,
ReplyDeleteEk baat puchni hai. Kuch log bolte hai ki jis samay ashok the great ne 84000 structures banaye the tab amawasya ki raat ko buddh followers ne diye jalaye n celebrate kiya. But kafin log ye bolte hai ki bas uss saal hi ye celebration hua, uske aage wale saalon main ni hua. Tho ye puchna hai ki kahin par eisa likha hua hai proof ke form main ki uske baad har saal buddh followers ne diye jalaye n celebrate kiya ho? Agar likha hai tho please link bhejiye.
Baht log bolte hai ki 84000 stupa, chitya, viharas banwane ke baad bs ussi saal diye jalaye the....kahin par eisa likha hai ki uske baad se har saal diye jalane ka prachalan hua buddh followers ke dwara? Agar likha hai tho please batao?
ReplyDeleteनमो बुद्धाय ! जय भीम ! जय भारत !
ReplyDeleteMast joke mara re 😂😂😂😂😂
ReplyDeleteJai bhim
ReplyDeleteRight jai ashoka jai maa bharati
ReplyDeleteHumarae sare tyohar China liya tha Brahmano ne aur ab hume bapad lena he
ReplyDeleteJai deeputsav
Namo buddhay, Jai bhim🙏
ReplyDeleteJay bheem namo buddhay
ReplyDeleteHappy deepdamotsav
I like sr....
ReplyDeleteAcchi jankari h ,,
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